Historical Places of Alwar: Bhangarh Fort

भानगढ़ 

सन् 1631 में राजा माधोसिंह द्वारा करीब 10 हजार की आबादी की बसाई हुई यह नगरी अचानक अज्ञात कारणों से उजड़ गई। यहां पर योजनाबद्ध तरीके से निर्मित आवास, बाजार एवं कलात्मक मंदिर देखने लायक हैं। भानगढ़, राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के एक छोर पर स्थित है। यहाँ का किला बहुत प्रसिद्ध है। इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था। भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रिहाइश बना लिया। माधोसिंह के तीन बेटे थे- (1) सुजाणसिंह (2) छत्रसिंह (3) तेजसिंह। माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ का शासक हुआ। छत्रसिंह के बेटा अजबसिंह थे। यह भी शाही मनसबदार थे। अजबसिंह ने आपने नाम पर अजबगढ़ बसाया था। अजबसिंह के बेटा काबिलसिंह और इस के बेटा जसवंतसिंह अजबगढ़ में रहे। अजबसिंह के बेटा हरीसिंह भानगढ़ में रहे। माधोसिंह के दो वंशजों को औरंगजेब के समय भानगढ़ दे दिया गया था। मुगलों के कमज़ोर पड़ने पर महाराजा सवाई जयसिंह जी ने इन्हें मारकर भानगढ़ पर अपना अधिकार जमाया। भानगढ़ का किला चहारदीवारी से घिरा है जिसके अंदर घुसते ही दाहिनी ओर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाजार है जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनाई गई दोमंजिली दुकानों के खंडहर हैं। किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल है जिसकी उपरी मंजिल लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। एक लोकमान्यता के अनुसार भानगढ़ से सम्बन्धित कथा  है कि उक्त भानगढ़ बालूनाथ योगी की तपस्या स्थल था जि‍सने इस शर्त पर भानगढ के कि‍ले को बनाने की सहमति‍ दी कि‍ कि‍ले की परछाई कभी भी मेरी तपस्या स्थल को नही छूनी चाहि‍ये परन्तु राजा माधो सि‍हं के वंशजो ने इस बात पर ध्यान नही देते हुए कि‍ले का निर्माण उपर की ओर जारी रखा इसके बाद एक दि‍न कि‍ले की परछाई तपस्या स्थल पर पड़ गयी जि‍स पर योगी बालूनाथ ने भानगढ़ को श्राप देकर ध्वस्त कर दि‍या, श्री बालूनाथ जी की समाधि अभी भी वहां पर मौजूद है।

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