बाड़मेर की लोकसंस्कृति
बाड़मेर की लोकसंस्कृति पूरी दुनिया में विख्यात है। आधुनिकता की चकाचौंध से कोसो दूर तनाव रहित जन जीवन हर किसी को उल्लासित करता है। यहां के लोक संगीत की स्वर लहरियों की कोई सानी नहीं है। यहां के लोक कलाकार भूंगड़े खां, आमद फकीर, धोधे खां, समन्दर खां, गाजी खां, हाकम खां, अनवर खां, बांका राम भील, सच्चु खां एवं रमजान खां के नाम प्रमुख हैं। इनके लोक वाद्य मोरचंग, खड़ताल, रावणहत्था, मुरली, अलगोजा, ढोलक, नड़, सुरमण्डल, कमायचा आदि हैं। यहां के प्रमुख लोकगीत चिरमी, रूणझुणिया, झल्ला, नीम्बूडा, इंडोणी, पणिहारी, मोनीबाई, कुरजां, गोरबन्ध, घूमर, ओलू, सूवा सुवाटिया बेमिसाल हैं। स्मरणीय होगा कि झांफली में जन्में स्व.सद्दीक खां ने जादुई खड़ताल वादन द्वारा संगीत प्रेमियों के दिलों में अमिट स्थान बनाया और खड़ताल वादन को एक नया आयाम दिया।