बाला दुर्ग
अलवर का बाला दुर्ग ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण दुर्ग है। शिल्प शास्त्र के मुताबिक बाला दुर्ग यदियानी शिल्प जाति का है। यह समुद्रतल से 1960 फुट और समतल भूमि से एक हजार फुट ऊॅंचा है। इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण तक 3 मील, चौड़ाई पूर्व से पश्चिम तक एक मील है जबकि परिधि 6 मील की है। बाला दुर्ग में 15 बड़ी, 52 छोटी बुर्जे तथा 3359 कंगूरे हैं। प्रत्येक कंगूरे में दो—दो छिद्र हैं जहां से एक बार 6718 गोलियां चलाई जा सकती है। किले की रक्षा के लिए बनी प्राय: चालीस से पचास फुट ऊॅंची प्राचीर एवं बुर्जों के अतरिक्ति कुछ बुर्जें ऐसी हैं जो परिधि के बाहर आस—पास के पहाड़ों पर बनाई गई हैं औश्र वे किले के आंख के रूप में दूर—दूर तक दुश्मन की निगाह रखती थी। इन बुर्जों में मदार घाटी की बुर्ज, धौलीदूब की बुर्ज, आड़ा—पाड़ा की बुर्ज, जम्बूसाना बुर्ज, छटंकी बुर्ज और काबुल खुर्द बुर्ज प्रमुख हैं। किले में प्रवेश के लिए छह दरवाजे हैं जिनमें पश्चिम में चांदपोल, पूर्व में सूरजपोल, दक्षिण में लक्ष्मण पोल और उत्तर में अंधेरी दरवाजा है। इसके अतिरिक्त पश्चिम में जयपोल और पूर्व में कृष्ण कुण्ड के पास कृष्ण पोल भी है।