कोटड़ा का किला (Fort Kotra)
रेगिस्तानी अंचल में से एक छोटी सी भाखरी पर जैसलमेर के किले के आकार का यह किला बाड़मेर के शिव तहसील के कोटड़ा (Kotra) गांव में बना हुआ है। यह भी कभी जैन सम्प्रदाय की विशाल नगरी थी। बाड़मेर (Barmer) से करीब 65 किलोमीटर दूर सड़क मार्ग से यह स्थान जुड़ा हुआ है। किले का निर्माण किराडू के परमार शासकों के हाथों होना बताया जाता है। इसके शिलालेख पर विक्रम संवत 123 लिखा है। किले में सुन्दर शिल्प कलाकृतियों से एक मेडी भी है जिसे मारवाड़ के खजांची गोरधन खींचा ने बनवाया था। किले में पीने का सरगला नाम का कुंआ भी है। कोटड़े का किला मारवाड़ के सर्वश्रेष्ट नव कोटो (दुर्ग) में से एक है। कोटड़ा की गिनती मण्डोर, आबू, जालोर, बाड़मेर, परकारां, जैसलमेर, अजमेर व मारु के किलो के साथ की जाती है। इस किले के चारो ओर बड़ी बड़ी आठ बुर्जे बनी हुई है। इन बुर्जो के बीच बीच में विल ऊंची दीवारो के मध्य कई महल और मकान है। इस किले को भारी चट्टानो को काट कर सोनार किले कि तरह बनाने का अद्भुत प्रयास किया गया है। किले के स्वामित्व के सम्बन्ध में एक शिलालेख मिलता है। जिसमें विक्रम सम्वत 123 विद्यमान है। जबकि अन्तिम अक्षर लुप्त है। इससे आभास होता है कि किला विक्रम संवत 1230 से 1239 तक अविध में आसलदेव ने कराया था। उन्होने किले की मरम्मत करवाने के साथ कई राजप्रसादो का भी निर्माण कराया। कोटड़े के किले में एक कलात्मक झरोखा है जिसे स्थानिय भाशा में मेडी कहते है। मेडी भी जीणा शीर्ण अवस्था में है इसे राव जोधाजी के वांज मारवाड़ के शासक मालदेव के खजांची गोवर्धन खीची ने बनाया था। राठौड़ो का आधिपत्य होने के कारण आज भी यहां राठौड़ो की कोटड़िया विख्यात है।