नागणेची माता का मंदिर (Nagnechi Mata Temple )
पचपदरा नामक स्थान नमक के लिए विख्यात है। बाड़मेर—जोधपुर सड़क मार्ग का यह मध्यवर्ती स्थान है। इस स्थान पर पंवारों, चौहानों, गोहिलों एवं राठौड़ों ने अपना शासन किया था। यहां जैन मंदिर के अलावा पचपदरा के समीपवर्ती ग्राम नागोणा में नागनेची माता का मंदिर बना हुआ है। इसमें विद्यमान लकड़ी में प्राचीन मूर्ति कला का विशेष रूप देखने को मिलता है। बाड़मेर जिले में उपरोक्त दर्शनीय स्थलों के अलावा सिणधरी में शिव मंदिर, तारातरा मठ, चौहट्टन की मढ़ी, गुढ़ामलानी के महादेव, कोनरा में शीतला माता का मंदिर, सिणधरी रावत का गढ़नगर, गुड़ा में ठाकुमर की हवेली आदि कई स्थान ऐतिहासिक महत्व के हैं। नागनेची माता राजस्थान के राठौड़ राजवंश की कुलदेवी चक्रेश्वरी नागणेची या नागणेचिया के नाम से भी विख्यात हैं। प्राचीन ख्यातों और इतिहास ग्रंथों के अनुसार मारवाड़ के राठौड़ राज्य के संस्थापक राव सिन्हा के पौत्र राव धूहड़ ने विक्रम संवत 1349-1366 में सर्वप्रथम इस देवी की मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनवाया। राजा राव धूहड़ दक्षिण के कोंकण जो अब कर्नाटक में स्थित है जाकर अपनी कुलदेवी चक्रेश्वरी की मूर्ति लाये और उसे पचपदरा से करीब 7 मील पर नागाणा गाँव में स्थापित की, जिससे वह देवी नागणेची नाम से प्रसिद्ध हुई। अष्टादश भुजाओं वाली नागणेची महिषमर्दिनी का स्वरुप है। बाज या चील उनका प्रतीक चिह्न है,जो मारवाड़ (जोधपुर),बीकानेर तथा किशनगढ़ रियासत के झंडों पर देखा जा सकता है। नागणेची देवी जोधपुर राज्य की कुलदेवी थी। चूंकि इस देवी का निवास स्थान नीम के वृक्ष के नीचे माना जाता था अतः जोधपुर में नीम के वृक्ष का आदर किया जाता था और उसकी लकड़ी का प्रयोग नहीं किया जाता था।