Districts of Rajasthan: zila darshan udaipur

Districts of Rajasthan: zila darshan udaipur

जिला दर्शन — उदयपुर (udaipur) 

भारत का दूसरा कश्मीर माना जाने वाला उदयपुर खूबसुरत वादियों से घिरा हुआ है। अपने नैसर्गिक सौन्दर्य सुषमा से भरपूर झीलों की यह नगरी सहज ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उदयपुर जिला हस्तशिल्प की विभिन्न विधाओं से देश विदेश में अपनी पहचान बनाए हुए है।

उदयपुर (udaipur) — भौगोलिक स्थिति Click here to read More

➤ राज्य के दक्षिणाचंल में स्थित उदयपुर जिले का विस्तार 23.46’ से 26. से उत्तरी अंक्षाश एवं 73. से 70.35’ पूर्वी देशान्तर के मध्य है।
➤ इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 12,499 वर्ग किलोमीटर है।
➤ इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 577 मीटर आंकी गई है।
➤ उदयपुर के पूर्व में चित्तौड़गढ़ जिला, उत्तर में राजसमन्द, उत्तर-पश्चिम में पाली, पश्चिम में सिरोही, पश्चिम-दक्षिण में गुजरात राज्य की सीमा, दक्षिण में डूंगरपूर तथा दक्षिण-पूर्वी भाग में बांसवाड़ा जिला है।

उदयपुर (udaipur) — जलवायु Click here to read More

➤ उदयपुर जिले की जलवायु समशीतोष्ण एवं स्वास्थ्यप्रद मानी जाती है, जिसमें मौसमी परिवर्तनों का दबाव सर्वाधिक गर्मी के माह है।
➤ वर्ष 2000 में यहां न्यूनतम तापमान 5 सेन्टीग्रेड रिकार्ड किया गया।
➤ औसत तापमान 22 सेन्टीग्रेड दर्ज किया गया।
➤ उदयपुर नगर में वर्षा का औसत 40.25 सेन्टीमीटर है।

उदयपुर (udaipur) — खनिज सम्पदा Click here to read More

➤ उदयपुर जिले में खनिजों का अनुपम भण्डार है। यहां महत्वपूर्ण खनिजों की विभिन्न किस्में पाई जाती है।
➤ जिले में प्राप्त होने वाले धातु तथा अधातु खनिजों में तांबा, लेड, जस्ता, चांदी आदि प्रमुख है।
इनके अलावा मैगजीन, लोहा, चट्टानी फाॅस्फेट, ऐस्बेस्टोस, केल्साइट, लाइमस्टोन, डोलोमाइट तथा संगमरमर आदि प्रमुख है।

उदयपुर (udaipur) — वन एवं वन्य-जीव Click here to read More

➤ उदयपुर जिले में 4,367.77 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सघन वन पाए जाते हैं।
➤ लकड़ी, कोयला, गोंद, बांस, तेन्दूपत्ता, कत्था, शहद, मोंम, लाख, आदि की सुलभता से राज्य की अर्थ-व्यवस्था को काफी सहारा मिलता है।
➤ वनस्पतियों की भी यहां विभिन्न श्रेणियां हैं, जिनमें आम, बबूल, बरगद, ढाक, खेजड़ी, गूलर, नीम तथा सालर बहुतायात से मिलती है।
➤ जिले के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले वन्य-जीवों में पशु-पक्षी तथा सरासृप (रेंगने वाले जन्तु) भी मिलते है।
➤ चीतल धरियावद के निकट जाखम नदी के तट पर स्थित वनों में बहुतायात से पाए जाते हैं।
जिले के जयसमन्द वन्य जीव अभयारण्य तथा सुन्दरमाता अभयारण्य में कई नवीन जीवों का पता चला है।

उदयपुर (udaipur) — ऐतिहासिक परिदृश्य Click here to read More

➤ तत्कालीन मेवाड़ रियासत की यह राजधानी देशी रजवाड़ों के समय में अपने शौर्य एवं पराक्रम के कारण चर्चित रही।
➤ इसका गौरवपूर्ण इतिहास, प्राकृतिक सुषमा एवं धरातलीय विशिष्टता, प्रागैतिहासिक काल के अवशेष, वर्तमान सांस्कृतिक एवं शोध केन्द्र बरबस ही लोगों को अपनी ओर खींचते हैं।
➤ मेवाड़ रियासत की चर्चा के दौरान हम महाराणा प्रताप की शौर्य एवं पराक्रम की चर्चा किए बिना नहीं रह सकते।
➤ उस समय भारतीय राजतंत्र में यही एक मात्र हिन्दु शासक बचा हुआ था। जिसने मुगल सम्राट की अधीनता नहीं स्वीकारी।
➤ अपनी वीरता के दम पर उन्होंने मातृभूमि की रक्षार्थ विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी जनयुद्ध लड़ा और मुगल सम्राट अकबर के हौंसलें पस्त कर दिए।
➤ सुरक्षा की दृष्टि से एवं अन्य कारणों से मेवाड़ रियासत की राजधानी निरन्तर बदलती रही।
जिले के आहोर (भीण्डर), आधारपुर, आहड़, कुम्भलगढ़, नागदा, चावण्ड आदि स्थानों के साथ ही उदयपुर को भी मेवाड़ की राजधानी रहने का सौभाग्य मिला।
➤ अतीत में मेदपाट के नाम से विख्यात मेवाड़ की राजधानी उदयपुर में पाषाणयुगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
➤ इस क्षेत्र में प्रारम्भिक मानव का अस्तित्व पाया गया है जो पत्थरों के औजार इस्तेमाल करता था और वह मानव खाने की सतत् खोज में व्यस्त रहता था।
➤ आहड़ एवं गिलूण्ड जैसे स्थानों में हुई पुरातात्विक खुदाई के परिणामस्वरूप प्राप्त भौतिक अवशेषों से ताम्रपाषाण कालीन सभ्यता के अवशेषों का पता चला है जो ईसा से 1800 वर्ष पूर्व की है।
➤ उस समय का मानव उच्च कोटि के चक्र निर्मित काले एवं लाल पात्रों का प्रयोग करता था।
ये आम तौर पर सफेद रंग के पुते होते थे तथा उस काल में ताम्बा धातु का प्रयोग भी प्रचलित था।
➤ कुछ शताब्दियों के बाद आहड़ (आधार नगरी) में ईसा पूर्व ही मानव पुनः आबाद हुआ जिसका सम्बन्ध कुषाणकालीन युग से मेल खाता है।
➤ पुरातत्ववेताओं ने आहड़ के समीप टीले पर हुई खुदाई के अवशेषों के आधार पर हड़प्पा एवं मोहन जोदड़ों की सभ्यता से इस नगर का सम्पर्क रहा होना सिद्ध किया है।
➤ मेवाड़ रियासत देश की प्राचीनतम रियासतों में से है।
➤ जहां ईसा पश्चात छठी शताब्दी में गुहिलवंशियों का शासन रहा, जिनका यश एवं कीर्ति पताकाएं दूर-दूर तक फैली हुई थी।
➤ पौराणिक वंशावली के अनुसार मेवाड़ का राजवंश सूर्यवंशी माना गया है, इतिहासविदों के अनुसार गुहिलवंशी भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज है।
➤ कुछ शिलालेखों एवं प्राचीन सिक्कों के अनुसार गुहिलों के आदि पुरूष गुहदत्त थे जबकि कर्नल टाॅड ने विक्रम संवत 1034 के शिलालेखों की पंक्ति ‘‘जयति श्री गुहदत्त प्रभवः’’ श्री गुहिलवंशस्य के आधार पर गुहदत्त से पूर्व गुहिलवंश का अस्तित्व सिद्ध किया है।
➤ गुहदत्त का छठी शताब्दी में मेवाड़ पर शासन रहा। उन्हीं के नाम के आधार पर यहां के शासक गुहिलवंशी अथवा गहलोत वंशी कहलाए।
➤ मेवाड़ में भी योद्धा रियासती सेना के महत्वपूर्ण अंग थे।
➤ सूर्यवंशी क्षत्रियों के इस राजवंश की धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा थी एवं सम्मान रहा इसीलिए मेवाड़ के राजचिन्ह में एक तरफ राणा तो दूसरी तरफ तीर कमान लिए भील तथा इसके नीचे नीति वाक्य अंकित है।
➤ ‘‘जो दृढ़ राखे धर्म को तिहि राखें करतार’’ इसका आशय है कि -संसार का कर्ता परमात्मा उसी की रक्षा करता है, जो अपने कर्तव्य (धर्म) पर दृढ़ रहता है।
➤ मेवाड़ के अधिपति (श्रद्धावश) ‘‘एकलिंगजी-शिव’’ माने गए हैं।
➤ राज सत्ता संचालित करने वाले शासकगण अपने आपको एकलिंगजी का ‘‘दीवाण’’ (मंत्री) मानते हैं।
➤ इसी मान्यता के आधार पर सभी राजकीय दस्तावेजों तथा ताम्रपत्रों पर ‘श्री एकलिंगजी प्रसातातु तथा दीवाणजी आदेशात’ अंकित रहते थे।
➤ मातृभूमि की रक्षार्थ त्याग, बलिदान एवं शौर्य की अनुपम मिसाल महाराणा प्रताप के पिता एवं पन्नाधाय द्वारा रक्षित महाराणा उदयसिंह ने सन् 1559 में उदयपुर नगर की स्थापना की।
➤ उदयपुर शहर का नामकरण इसीलिए उदयसिंह के नाम पर किया गया।
➤ लगातार मुगलों के आक्रमणों से सुरक्षित स्थान पर राजधानी स्थानान्तरित किए जाने की योजना से इस नगर की स्थापना हुई।
➤ सन् 1572 में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र प्रताप का राज्याभिषेक हुआ।
➤ उन दिनों एक मात्र यही ऐसे शासक थे जिन्होंने मुगलों की अधीनता नहीं स्वीकारी। महाराणा प्रताप एवं मुगल सम्राट अकबर के बीच हुआ हल्दीघाटी का घमासान युद्ध मातृभूमि की रक्षा के लिए इतिहास प्रसिद्ध रहा है।
➤ देश के आजाद होने से पूर्व रियासती जमाने में गुहिल वंश के अंतिम शासक महाराणा भोपालसिंह थे। जो राजस्थान के एकीकरण के समय सन् 30 मार्च 1949 में राज्य के महाराज प्रमुख रहे।
➤ सन् 1948 में संयुक्त राजस्थान राज्य बनने के साथ पूर्व रियासती ठिकानों को मिला कर उदयपुर जिले का गठन हुआ।

उदयपुर (udaipur) — दर्शनीय स्थल Click here to read More

➤ अद्वितीय सौन्दर्य एवं प्राकृतिक छटा से सुसज्जित उदयपुर को पूर्व का वेनिस, झीलों की नगरी, राजस्थान का कश्मीर आदि अनेक विशेषण दिए गए हैं।
➤ सुन्दर पर्वतमालाओं के मध्य अवस्थित शहर नीले जल से युक्त झीलों में अपनी परछाई निहारते हुए यहां के राजप्रासाद, शीतल समीर के झोंकों से सम्पूर्ण वातावरण को सुवासित करने वाले यहां के पुष्पोद्यान और मेवाड़ के शौर्यपूर्ण अतीत का स्मरण कराने वाले यहां के अवशेष निस्संदेह रूप से उदयपुर को पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं।

उदयपुर (udaipur) — राजमहल Click here to read More

➤ पिछोला झील के तट पर स्थित ये महल उदयपुर नगर में सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित ये महल इतने भव्य और विशाल है कि प्रसिद्ध इतिहासकार फग्र्यूसन ने इन्हें ‘राजस्थान के विण्डसर महलों’ की संज्ञा दी।
➤ महलों में सबसे पुराना भाग ‘रायआंगन’ नौचैकी, धूणी आदि को महाराणा उदयसिंह ने बनवाया था। इन महलों से नगर का विहंगम और पिछोला झील का अत्यन्त सुन्दर दृश्य दृष्टिगोचर होता है।
➤ इन महलों के प्रताप कक्ष, बाड़ी महल, दिलखुश महल, मोती महल, भीम विलास, छोटी चित्रशाला, स्वरूप चैपाड़, प्रीतम निवास, शिवनिवास, इत्यादि बहुत सुन्दर व दर्शनीय है।
➤ राजमहल में मयूर चैक का सौन्दर्य अनूठा है।
चारों ओर कांच की बड़ी बारीकी एवं कौशल से जमाकर मोर और कुछ मुर्तियां बनाई गई हैं। यहां बने पांच मयूरों का सौन्दर्य देखते ही बनता है।
➤ प्रताप कक्ष में महाराणा प्रताप के जीवन से संबधित अनेकों चित्र, अस्त्र-शस्त्र, जिरह-बख्तर, इत्यादि का संग्रह है।
➤ यहीं महाराणा प्रताप का ऐतिहासिक भाला रखा है जिससे हल्दीघाटी के युद्ध में उपयोग किया गया था।

उदयपुर (udaipur) — लेक पैलेस Click here to read More

➤ यह महल सन् 1746 में महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने बनवाया।
➤ लगभग चार एकड़ में फैले इस महल के चारों ओर जल है, जिसके कारण विश्व के सुन्दर महलों में इसकी गणना की जाती है।
➤ महल की दीवारों पर बेजोड़ चित्रकारी नयनाकर्षक है। वर्तमान में यहां भारत के सर्वश्रेष्ठ होटलों में से लेक पैलेस होटल है।

उदयपुर (udaipur) — जनान महल Click here to read More

➤ राजमहल के दक्षिण में एक मध्यकालीन भवन है जो मेवाड़ के महाराणा कर्णसिंह की महारानियों हेतु सन् 1620 में निर्मित किया गया था।
➤ महल के अन्दर एक विशाल प्रांगण है। महल के ऊपर बनी जालीदार खिड़कियों से हवा और प्रकाश तो मिल ही जाता था, साथ ही रनिवास का पर्दा भी हो जाता था।
➤ जनानी ड्योढी से गुजर कर बाएं हाथ की ओर रंगमहल में पहुंचा जाता है जहां राज्य का सोना-चांदी और खजाना रखा जाता था, बाई ओर पीताम्बर रायजी, गिरधर गोपालजी तथा बाणनाथजी की मूर्तियां है।
➤ द्वितीय द्वार पत्थरों से जड़े विशाल प्रांगण लक्ष्मी चौक में खुलता है। इस चौक के दोनों ओर छतरियां वाले सुसज्जित भवन है। दक्षिणी छोर महारानी के अतिथियों के लिए था।

उदयपुर (udaipur) — राजकीय संग्रहालय Click here to read More

➤ राजमहल के ही एक हिस्से में राज्य सरकार का संग्रहालय है।
➤ इस संग्रहालय में ऐतिहासिक एवं पुरातत्व संबंधी साम्रगी का सम्पन्न संग्रह है।
➤ भारत के विभिन्न प्रदेशों में पहने जाने वाली पगड़ियों व साफों के नमूने, सिक्के, उदयपुर के महाराणाओं के चित्र, अस्त्र-शस्त्र व पोशाकों के संग्रह के साथ-साथ शहजादा खुर्रम की वह ऐतिहासिक पगड़ी भी है जो मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा की दोस्ती में अदला-बदली की गई थी। ➤ उदयपुर के आस-पास के भागों में खुदाई में प्राप्त मूर्तियों एवं शिलालेखों का भी यहां अच्छा संग्रह है।

उदयपुर (udaipur) — जगदीश मंदिर Click here to read More

➤ यह मंदिर राजमहलों के पहले मुख्य द्वार बड़ीपाल से लगभग 175 गज की दूरी पर स्थित है।
इसका निर्माण सन् 1651 में महाराणा जगतसिंह प्रथम (1628-59) द्वारा हुआ था।
➤ अनुमानतः इस पर 15 लाख रुपया व्यय हुआ था। यह 80 फुट ऊंचे प्लेटफार्म पर निर्मित है। मंदिर में काले पत्थर से निर्मित भगवान जगदीश की भव्य मूर्ति है।

उदयपुर (udaipur) — पिछोला झील Click here to read More

➤ इस झील को चैदहवीं शताब्दी में एक बनजारे द्वार महाराणा लाखा के समय में बनवाया गया था।
➤ कालान्तर में उसके पुननिर्माण एवं जीर्णाेद्धार भी हुए हैं।
➤ उत्तर से दक्षिण तक करीब 4.5 किलोमीटर चैड़ी यह झील 10-15 फुट गहरी है।
➤ इसकी जल क्षमता 41 करोड़ 20 लाख घन फुट है। झील के तट पर बने घाट और मंदिर आकर्षण के केन्द्र हैं।

उदयपुर (udaipur) — फतहसागर Click here to read More

➤ नगर के उत्तर-पश्चिम में करीब 5 किलोमीटर दूर झील सर्वप्रथम सन् 1678 में महाराणा जयसिंह द्वारा बनवाई गई थी, परन्तु एक बार की अतिवृष्टि ने इसे तहस नहस कर दिया।
➤ उसके पुननिर्माण का श्रेय महाराणा फतेहसिंह को है जिन्होंने 6 लाख रुपयों की लागत से इस सशक्त बांध का निर्माण करवाया, उन्हीं के नाम पर झील को फतहसागर कहा जाने लगा।
➤ यह झील तीन वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है।

उदयपुर (udaipur) — नेहरू गार्डन Click here to read More

➤ फतहसागर के मध्य में समुद्रतट से लगभग 1960 फुट ऊंचाई पर स्थित यह उद्यान अधिकतम 779 फुट लम्बा, 292 फुट चैड़ा है तथा साढ़े चार एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
➤ उद्यान में पहुंचने के लिए झील के किनारे से नियमित नौका सेवा की व्यवस्था उपलब्ध है।
इस उद्यान के फव्वारें मैसूर के वृन्दावन उद्यान की तरह है।
➤ रात्रि में रंगीन प्रकाश व्यवस्था से ये ऐसे दृष्टिगोचर होते हैं मानों धरती के वृक्ष से रंगों की सहस्त्रों धाराएं प्रस्फुटित हो रही हों।
➤ फतहसागर झील के मध्य किनारे से कुछ दूर एक छोटे से टापू पर एक विशाल जेट फव्वारा भी लगाया गया है।

उदयपुर (udaipur) — महाराणा प्रताप स्मारक (मोती मगरी) Click here to read More

➤ फतहसागर के किनारे पहाड़ी मोती नगरी को महाराणा प्रताप स्मारक के रूप में विकसित किया गया है।
➤ मोती नगरी का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदयसिंह उदयपुर नगर के बसाने के पूर्व इसी पहाड़ी ‘‘मोती महल’’ बनवा रहे थे, जिनके भग्नावेष आज भी विद्यमान है।
➤ इन्हीं खण्डहरों के पास चेतक पर सवार प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है।
➤ फूलदार पौधों की क्यारियां, फव्वारों से युक्त जलाशय एवं छोटे-बड़े सुन्दर लाॅन इस स्मारक की भव्यता की श्रीवृद्धि करते हैं।

उदयपुर (udaipur) — गुरू गोविन्दसिंह चट्टान बाग Click here to read More

➤ फतहसागर के सर्पाकार मार्ग पर पहाड़ी को कांट-छांट कर एक सुन्दर उद्यान बनाया गया है जिसे चट्टान बाग कहते है।
➤ इस उद्यान से सम्पूर्ण झील का दृश्य बड़ा ही सुन्दर दिखाई देता है। यहां से सूर्यास्त अत्यधिक आकर्षक एवं सुन्दर दिखाई देता है।
➤ इसी के पास से नेहरू उद्यान के लिए नावें जाती है। समीप ही जापानी उद्यान पद्धति के आधार पर एक सुन्दर ‘भामाशाह उद्यान’ भी है।

उदयपुर (udaipur) — पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र Click here to read More

➤ भारतीय संस्कृति, लोककला तथा परम्पराओं के संरक्षण एवं उन्हें पुनर्जीवित करने हेतु चार राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा व राजस्थान का पश्चिमी सांस्कृतिक केन्द्र पिछोला के तट गणगौर घाट पर स्थित बागोर की हवेली में स्थापित किया गया है।

उदयपुर (udaipur) — उदयसागर Click here to read More

➤ उदयपुर के पूर्व में लगभग 13 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस झील का निर्माण उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदयसिंह ने सन् 1559 से सन् 1565 के मध्य करवाया था।
➤ झील लगभग 4 किलोमीटर क्षेत्र में फैली है।

उदयपुर (udaipur) — सहेलियों की बाड़ी Click here to read More

➤ यह उदयपुर का सुन्दरतम उद्यान है। महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय ने इसका निर्माण तथा महाराणा फतहसिंह ने इसका पुननिर्माण करवाया था।
➤ कहा जाता है कि यहां राजकुमारियां अपनी सहेलियों के साथ मनोरंजन के लिए आती थी। इसीलिए इसे सहेलियों की बाड़ी कहा जाता है।
➤ यहां फव्वारों की इतनी सुन्दर व्यवस्था है कि ग्रीष्म ऋतु की तपती दोपहरी में भी सावन का सा आनन्द प्राप्त होता है।
➤ सहेलियों की बाड़ी में प्रवेश करते ही केन्द्रीय हौज के चारों ओर काले संगमरमर की छतरियां है तथा मध्य में श्वेत संगमरमर की बड़ी छतरी बनी है।
➤ हौज तथा छतरियों में फव्वारें लगे हैं। इसके पीछे संगमरमर के चार गज निर्मित है तथा जलाशय के मध्य एक सुन्दर फव्वारा है। यहां बच्चों की एक रेलगाड़ी भी है।

उदयपुर (udaipur) — सुखाड़िया सर्किल Click here to read More

➤ पश्चिम रेलवे ट्रेनिंग स्कूल के समक्ष स्थित सुखाड़िया सर्किल के मध्य में निर्मित 42 फुट ऊंचा फव्वारा देश में अपने ढंग का अनोखा है।
➤ फव्वारे के ऊपरी भाग में विशाल गेहूं की बाली बनाई गई है।
सर्किल के एक कोने पर आधुनिक राजस्थान के निर्माता पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्री मोहनलाल सुखाड़िया की प्रतिमा के पास उद्यान भी बनाया गया है।
➤ जिले में उपरोक्त दर्शनीय स्थलों के अलावा यहां गुलाब बाग, संजयपार्क, सज्जनगढ़ महल, सौर वैधशाला आदि भी है।

उदयपुर (udaipur) — मेले एवं त्योहार Click here to read More

➤ जिले के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों के सांस्कृतिक, धार्मिक तथा सामाजिक जीवन में मेले और त्योहारों की विशेष भूमिका है। अधिकांश मेले सामान्यतः मौसमी तथा धार्मिक है।
➤ व्यावसायिक तथा पर्यटन की दृष्टि से पिछले कुछ वर्षों में इनका महत्व और भी बढ़ गया है।
इन मेलों में आज भी लोगों को पहले जैसा आनन्द और मनोरंजन की अनुभूति होती है तथा इनसे स्थानीय निकाय को आय होती है।
➤ प्रमुख मेलों में नाथद्वारा का अन्नकूट का मेला, एकलिंगजी का शिवरात्रि का मेला, उदयपुर नगर का गणगौर मेला, चावंड की प्रताप जयन्ती, चारभुजाजी का मेला, रिखबदेव में दशहरा का मेला आदि महत्वपूर्ण मेलें हैं।
➤ राज्य के अन्य भागों की तरह यहां भी हिन्दुओं के प्रमुख त्योहार दीपावली, होली, दशहरा, गणगौर, तीज, रक्षाबन्धन, मकर संक्रान्ति तथा जन्माष्टमी है। मुसलमान समुदाय द्वारा ईद, ईदुलफितर, ईदुल जुहा तथा रमजान त्योहार प्रमुख रूप से मनाएं जाते हैं।

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