बाड़मेर (Barmer) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
वर्तमान बाड़मेर (Barmer) का इतिहास विक्रम की दसवीं शताब्दी के पूर्व प्रतिहार एवं भाटी राजवंशों से सम्बद्ध रहा है। यह क्षेत्र किरात, शिवकूप एवं मेलोप्हथ तीन भू—भागों में विभक्त था। विक्रम की दसवीं शताब्दी में सिन्धुराज महाराज मरूमण्डल का शासन था। यह राज्य आबू से किरात कूप तथा ओसियां तक फैला हुआ था। सिंधुराज के बाद उत्पलराज, अख्यराज और कृष्णराव प्रथम (विक्रम सम्वत 1024) यहां के शासक रहे। विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य यहां धरणीधर नामक प्रख्यात परमार राजा हुआ। इसके ध्रुवभट्ट, महीपाल (यादवराज) और बागभट्ट तीन पुत्र थे। यही बागभट्ट अथवा बाहड़राव प्राचीन बाड़मेर को बसाने वाला था जिसकी स्थिती जूना—किराडू के पहाड़ों के पास थी। विक्रम सम्वत 1608 में जोधपुर के राव मालदेव गांगावत ने बाड़मेर और कोटड़ा पर अपना अधिकार कर लिया। यहां का सरदार भीम जैसलमेर भाग गया और वहां भाटियों के सैन्य दल के साथ पुन: लौटा किन्तु युद्ध में हार जाने से उसने मालदेव की अधीनता स्वीकार कर ली। ख्यातों के अनुसार भीम रतनावत राव जगमाल की सातवीं पीढ़ी में हुआ। इस भीमाजी रतनावत ने बापडाउ के ठिकाने पर विक्रम सम्वत 1642 में वर्तमान बाड़मेर बसाया। भीमाजी रतनावत के समय से ही बाड़मेर—जोधपुर राज्य के अधीन रहा तथा ईस्वी सम्वत 1891 में इसकी विलीनीकरण मारवाड़ में कर हाकिमी शासन प्रारंभ हुआ जो भारत की स्वाधीनता तक चलता रहा। आजादी के बाद यह जिला पश्चिमी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर होने से महत्वपूर्ण हो गया। सन 1965 एवं 1971 में भारत पाक युद्ध का क्षेत्र यह जिला भी रहा।