कपालेश्वर महादेव (Kapaleshwar Mahadev)
बाड़मेर के चौहटन कस्बे में यह स्थान विद्यमान है जो बाड़मेर से करीब 55 किलोमीटर दूर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। चौहटन की विशाल पहाड़ी के बीच कपालेश्वर महादेव के 13वीं शताब्दी के देवालय आज भी सुन्दर शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध हैं। बताया जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास का अंतिम समय यहीं छिपकर बिताया था। यहां के तीन शिव मंदिरों के अवशेष अब भी विद्यमान है। कपालेश्वर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर बिशन पागलिया नामक पवित्र स्थान है जहां भगवान विष्णु के चरणचिन्ह पूजे जाते हैं। इन स्थानों के आसपास प्रति वर्ष सोमवती अमावस्या को मेला लगता है। इसी प्रकार प्रत्येक बारहवें वर्ष यहां एक विशाल मेले का भी आयोजन होता है जिसे कुंभ मेले का मरूस्थलीय रूप भी समझा जाता है। यहां के पहाड़ों पर चौदहवीं शताब्दी के एक दुर्ग के अवशेष भी मौजूद हैं जिसे हापाकोट कहते हैं। इसका निर्माण जालौर के सोनगरा राजा कान्हड़ देव के बड़े भाई सालमसिंह के द्वितीय पुत्र हापा ने कराया था। उसी के नाम पर इसे हापाकोट अथवा हापागढ़ कहते हैं।